इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी और फ्रांस के इमैनुएल मैक्रों के तनावपूर्ण रिश्ते का वीडियो वायरल
Posted on जून 16, 2024 by मेघना सिंह
हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच तनावपूर्ण माहौल स्पष्ट देखा जा सकता है। इस वीडियो ने दुनियाभर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, जिसमें मेलोनी का ठंडा रवैया और दोनों नेताओं के बीच की असहजता उभरकर सामने आई है।
यह वीडियो G7 शिखर सम्मेलन के दौरान गर्भपात अधिकारों पर विवाद के बाद का है, जहां मेलोनी और मैक्रों के बीच बातचीत का माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया था। दरअसल, बात यह थी कि G7 शिखर सम्मेलन के समापन बयान में गर्भपात के अधिकारों के समावेश को लेकर असहमति उत्पन्न हो गई थी।
इस असहमति की शुरुआत तब हुई जब संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्रांस ने महिलाओं के अधिकारों पर विशेष जोर देते हुए गर्भपात के अधिकारों के स्पष्ट उल्लेख की मांग की। लेकिन, मेलोनी ने गर्भपात के मुद्दे पर अपनी विरोधी सोच के कारण इसका विरोध किया।
मेलोनी के कार्यालय ने हालांकि LGBTQ अधिकारों के उल्लेख को हटाने की रिपोर्ट का खंडन किया है, लेकिन इस विवाद ने शिखर सम्मेलन के मुख्य मुद्दे, यूक्रेन को समर्थन देने के प्रयासों को कहीं न कहीं पीछे धकेल दिया।
अंततः, शिखर सम्मेलन के समापन बयान में 'हम महिलाओं के लिए पर्याप्त, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सार्वभौमिक पहुंच के लिए अपनी प्रतिज्ञाओं को दोहराते हैं, जिसमें सभी के लिए व्यापक यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार शामिल हैं।' यह विवाद मेलोनी और उनके सहयोगियों के बीच गर्भपात अधिकारों के मुद्दे पर स्पष्ट मतभेद को दर्शाता है।
इस घटना के वीडियो में मेलोनी और मैक्रों के बीच तनावपूर्ण आदान-प्रदान स्पष्ट दिखाया गया है, जिसमें मैक्रों ने मेलोनी की ओर हाथ बढ़ाया लेकिन मेलोनी का हावभाव काफी ठंडा और अनिच्छुक देखा गया।
गर्भपात अधिकारों पर विवाद
गर्भपात के अधिकार पिछले कई दशकों से विभिन्न देशों में एक संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दा रहा है। विशेष रूप से, यूरोप के कई देशों में इस पर अलग-अलग विचारधाराएं प्रमुख हैं। इटली में गर्भपात अधिकारों पर व्यापक विरोधाभास देखने को मिला है। एक ओर जहां इसके समर्थक इसे महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता का मुद्दा मानते हैं, वहीं इसके विरोधी इसे नैतिकता और धार्मिक आस्थाओं से जोड़ते हैं।
शिखर सम्मेलन में, अमेरिका और फ्रांस ने महिलाओं के अधिकारों का स्पष्ट और मुखर समर्थन किया। उन्होंने महिलाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की अनिवार्यता पर जोर दिया, जिसमें गर्भपात सेवाएं भी शामिल हैं। उनके मुताबिक, महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करना समाज के समग्र विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
मेलोनी ने हालांकि, इस विषय पर अपने रूढ़िवादी दृष्टिकोण को बरकरार रखा। उनका मानना है कि गर्भपात जैसे मुद्दों पर राष्ट्रीय संप्रभुता और सांस्कृतिक मान्यताओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
विदेश नीति पर प्रभाव
इस विवाद का प्रभाव केवल शिखर सम्मेलन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह इटली और फ्रांस के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ा। दोनों नेताओं के बीच इस मुद्दे पर मतभेद उनके देशों के विदेश नीति पर महत्वपूर्ण असर डाल सकता है। गर्भपात अधिकारों पर यह मतभेद विशेष रूप से यूरोपीय संघ के अन्य देशों को भी प्रभावित कर सकता है, जहां विभिन्न देशों के नेताओं के बीच भी इस मुद्दे पर विभाजन देखा जाता है।
इस घटना का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कैसे व्यक्तिगत विचारधाराएं और वैचारिक मतभेद अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। वैश्विक मंच पर, नेताओं का हर कदम और उनका हावभाव न केवल उनके व्यक्तिगत रुख को दर्शाता है, बल्कि उनके देशों की नीति और दृष्टिकोण को भी प्रकट करता है।
सोशल मीडिया की भूमिका
इस तनावपूर्ण घटना का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर जियोर्जिया मेलोनी और इमैनुएल मैक्रों के कलुषित संबंधों की चर्चा छिड़ गई। सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने जहां एक ओर मेलोनी के ठंडे रवैये की आलोचना की, वहीं दूसरी ओर कुछ ने इसे एक नेतृत्वकर्ता के दृढ़ दृष्टिकोण के रूप में देखा।
वायरल वीडियो ने एक बार फिर दिखाया कि कैसे सोशल मीडिया पलभर में अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं को आम जनता तक पहुंचाने में सक्षम हो सकता है। इस प्रकार की घटनाएं सिर्फ राज्य स्तरीय बातचीत तक सीमित नहीं रह जातीं, बल्कि सार्वजनिक संवाद का हिस्सा बन जाती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समीकरण
इस घटना ने यह भी दर्शाया कि कैसे शिखर सम्मेलन के दौरान विवाद एक बड़े स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। मैक्रों और मेलोनी के बीच हुआ यह विवाद यूरोप के भीतर बढ़ते मतभेदों का प्रतीक है।
यहीं पर, अंतर्राष्ट्रीय राजनयिकों और नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्हें न केवल अपने देशों के मामलों को संभालना होता है, बल्कि वैश्विक मंच पर सामंजस्य और सहमति बनाए रखने की भी जिम्मेदारी होती है। शिखर सम्मेलन जैसे बड़े आयोजनों में ऐसी घटनाएं कभी-कभी सभी नेताओं के लिए सीख का अवसर भी बन जाती हैं।
इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में व्यक्तिगत विचारधारा और दृष्टिकोण कितना महत्वपूर्ण होता है। एक छोटी सी घटना भी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय नीति पर असर डाल सकती है। यह देखने लायक होगा कि आने वाले दिनों में इस विवाद के और किस तरह के प्रभाव देखने को मिल सकते हैं और दोनों देशों के बीच के रिश्ते में कोई बदलाव आता है या नहीं।