महामारी में फ्री राशन सहायता और मुफ्त उपहार में अंतर: सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष

27नवंबर

Posted on नव॰ 27, 2024 by मेघना सिंह

महामारी में फ्री राशन सहायता और मुफ्त उपहार में अंतर: सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष

मुफ्त राशन और मुफ्त उपहार में कानूनी भिन्नता

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अवलोकन में कोविड-19 महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन की आपूर्ति और आमतौर पर वितरित किए जाने वाले मुफ्त उपहारों के बीच मापदंड निर्धारित किए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि महामारी के असाधारण हालात ने मुफ़्त राशन की आवश्यकता बना दी, जिसे इनविशेष संकट के समय की जरूरत के आधार पर आवश्यक उपायों के रूप में देखा जाना चाहिए। लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधों के कारण लाखों प्रवासी श्रमिक अचानक बेकार हो गए, और इसलिए उनके लिए मुफ्त राशन आवश्यक था।

संवेदनशीलता और खाद्य सुरक्षा सवाल

संवेदनशीलता और खाद्य सुरक्षा सवाल

कोरोना महामारी के समय जब चारो तरफ अनिश्चितता फैली हुई थी, ऐसे में प्रवासी श्रमिकों के समक्ष खाना जुटाने की विकराल समस्या आकर खड़ी हो गई थी। कई राज्यों में यह संकट इतना गहरा गया कि लोग भूख से जूझने लगे। अदालत ने यह स्वीकार किया कि महामारी जैसे संकट के समय मुफ्त राशन उपलब्ध कराना एक निरंतर प्रयास था, ताकि नागरिकों को भोजन जैसी बुनियादी आवश्यकताएं उपलब्ध रहें। यह पहल तभी प्रभावी हो सकती थी जब विशेष जरूरतों को देखते हुए लक्षित उपाय किए जाएं।

लक्षित हस्तक्षेप की अनिवार्यता

लक्षित हस्तक्षेप की अनिवार्यता

महामारी ने स्पष्ट कर दिया कि आपात स्थिति के दौरान, सरकार को विशेष कार्रवाइयों के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसा कोई भी हस्तक्षेप जो समाज के एक विशाल वर्ग को सीधे तौर पर राहत दे सके, वह काफी महत्वपूर्ण होता है। चूंकि Lockdown के चलते कई लोग अपने घरों से दूर फंसे रह गए थे, ऐसे में सरकार द्वारा मुफ्त राशन का वितरण एक अत्याधिक आवश्यक कदम था। यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों को बुनियादी जरूरतें जैसे खाना, बिना किसी परेशानी के मिल सके।

आर्थिक नीतियों और मुफ्त उपहार के संभावित नुकसान

आर्थिक नीतियों और मुफ्त उपहार के संभावित नुकसान

मुफ्त उपहारों का वितरण अक्सर समाज को दीर्घकालिक स्रोतों से हटा सकता है और संबंधी आर्थिक नीतियों के प्रभाव को कमजोर कर सकता है। इसकी संभावनाओं के बारे में अदालत ने सावधानी बरतने की सलाह दी, ताकि सामान्य समय में इनका वितरण दीर्घकालिक स्थायित्व को प्रभावित न करे। समाज के लिए आवश्यक है कि लक्ष्य मूल नीतियों का पालन करें और केवल विशेष परिस्थितियों में ही मुफ्त सुविधाओं का लाभ उठाएं।

सुप्रीम कोर्ट की इस सजग अवलोकन ने एक बार फिर दिखाया कि संकट के समय में समाज को संरक्षित करना और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना कितना महत्वपूर्ण है। यह विधेयक सरकारी नीतियों के निर्धारण के दौर में प्रत्येक नागरिक की आवश्यकताओं के महत्व को रेखांकित करता है। पूरी आपदा के दौरान ठोस कदम उठा कर सरकार इस दिशा में आगे बढ़ सकती है। अतः यह आवश्यक है कि हम मुफ्त उपहारों के बजाय लक्षित हस्तक्षेपों पर अधिक ध्यान दें।

एक टिप्पणी लिखें