थलापति विजय: एक उद्घोषित नायक
फिल्म 'GOAT' में थलापति विजय के प्रदर्शन की खूब चर्चा हो रही है। यह फिल्म उनकी आखिरी फिल्मों में से एक है, इससे पहले कि वे पूर्ण रूप से राजनीति में संलग्न हो जाएं। विजय ने इस फिल्म में गांधी नामक नायक की भूमिका निभाई है, जो स्पेशल एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (SATS) का नेतृत्व करते हैं। उनके साथ प्रशांत, प्रभुदेवा, और अजय भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं। नया दर्शकों को विजय के राजनीतिक परिवर्तन का भी संकेत देती है।
कहानी और पटकथा
फिल्म की कहानी थाईलैंड में एक मिशन के दौरान गांधी को हुए निजी नुकसान से शुरू होती है, जिसके बाद वे एक कम जोखिम वाला कार्य ढूंढ़ने का प्रयास करते हैं। लेकिन, मॉस्को के एक कार्य यात्रा में उन्हें फिर से एक्शन में लौटना पड़ता है। वहां, वे अपने पुराने दुश्मन का सामना करते हैं। हालांकि, फिल्म की कहानी काफी साधारण है और कुछ हद तक अनुमानित भी है, जिससे दर्शकों को कुछ नया अनुभव नहीं मिलता।
विजय का प्रदर्शन
फिल्म को विजय की शानदार अभिनय कला का भी लाभ मिला है। उनकी काॅमिक टाइमिंग और स्क्रीन पर उनकी उपस्थिति ने दर्शकों को बांधे रखा है। फिल्म निर्माताओं ने बार-बार उनके अधिकांश शॉट्स पर जोर दिया है, जिससे यह साफ़ हो जाता है कि यह फिल्म मुख्य रूप से विजय के प्रशंसकों के लिए है।
फिल्म का निर्माण और निर्देशन
निदेशक वेण्कट प्रभु ने अपने अंदाज और ताजगी के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन इस फिल्म में कहानी में नवीनता का अभाव झलका है। अंत के 30 मिनट काफी रोमांचक होते हैं और कई मोड़ों तथा विशेष अतिथि प्रस्तुतियों से भरपूर हैं, जिससे यह अनुभाग फिल्म का सबसे मनोरंजक हिस्सा बन जाता है।
मिश्रित प्रतिक्रियाएं
फिल्म के कुछ हिस्से दर्शकों को प्रभावित करने में सफल रहे हैं, लेकिन कुछ तत्वों ने इसे दुहरावदार बना दिया है। जैसे कि मेट्रो लड़ाई का दृश्य, जिसमें खलनायक की पहचान पहले ही स्पष्ट हो जाती है। फिल्म की लंबाई तीन घंटे है, और कुछ स्थानों पर यह खींची हुई महसूस होती है।
कुल मिलाकर, 'GOAT' एक फैन-समर्पित फिल्म है, जो विजय के करियर का एक जश्न मनाने का प्रयास करती है। सभी सीमाओं के बावजूद, फिल्म विजय के प्रशंसकों के लिए एक आनंदक साबित हो सकती है, जो उनकी अद्वितीय शैली और अभिनय की काबिलियत को देखना पसंद करेंगे।
टिप्पणि
Chirag Desai
विजय का अभिनय तो बस फिल्म का एकमात्र कारण है। बाकी सब बोरिंग।
सितंबर 7, 2024 at 03:56
Tejas Shreshth
ये फिल्म तो एक बड़े से सामाजिक अलंकार है - विजय के व्यक्तित्व के चारों ओर घूमता हुआ एक आत्म-समर्पित मूर्ति। जब तक हम अपने राष्ट्रीय नायकों को अलौकिक बनाते रहेंगे, तब तक कला का असली अर्थ खो जाएगा। ये फिल्म एक भावनात्मक अभियान है, न कि किसी गहरे विचार का प्रतिबिंब।
सितंबर 7, 2024 at 14:22
sarika bhardwaj
गांधी का किरदार तो बिल्कुल फिल्मी है 😔 लेकिन विजय की आँखों में जो दर्द था... वो तो असली था 💔
सितंबर 7, 2024 at 16:29
Dr Vijay Raghavan
इस फिल्म को देखने वाले लोग भारत के दुश्मन हैं। विजय को नायक बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ये सब बाहरी शक्तियों की साजिश है। इस फिल्म में छिपा हुआ एक विदेशी जासूसी एजेंडा है।
सितंबर 7, 2024 at 17:15
Partha Roy
फिल्म लंबी है क्योंकि निर्माता जानते हैं कि विजय के बिना कोई नहीं बैठेगा। और अगर तुम इसे नहीं पसंद करते, तो तुम देश के खिलाफ हो।
सितंबर 8, 2024 at 00:06
Kamlesh Dhakad
मुझे लगता है विजय के फैन्स के लिए ये फिल्म बहुत अच्छी है। बाकी लोगों को तो बोर हो गया होगा, लेकिन ये फिल्म उनके लिए नहीं बनी।
सितंबर 9, 2024 at 00:48
ADI Homes
मैंने फिल्म देखी, और लगा जैसे कोई बहुत बड़ा दोस्त आया हो - थोड़ा ज्यादा बोलता है, लेकिन दिल से अच्छा है। बोरिंग भी लगा, लेकिन दिल लग गया।
सितंबर 9, 2024 at 10:51
Hemant Kumar
अगर आप विजय के अभिनय को देखना चाहते हैं, तो ये फिल्म अच्छी है। लेकिन अगर आपको नया कहानी चाहिए, तो ये नहीं। अच्छी तरह से बनी हुई एक फैन सर्विस।
सितंबर 10, 2024 at 16:19
NEEL Saraf
थाईलैंड से मॉस्को तक... ये ट्रैवल बुक लग रहा है! 😅 लेकिन विजय के लिए तो ये बस एक गाना है - जहां वो चलते हैं, वहां जनता गाती है।
सितंबर 11, 2024 at 23:48
Ashwin Agrawal
मुझे लगता है फिल्म का अंतिम 30 मिनट अच्छा था। बाकी जगहों पर थोड़ा धीमा लगा, लेकिन विजय की उपस्थिति ने सब कुछ बचा लिया।
सितंबर 12, 2024 at 22:30
Shubham Yerpude
इस फिल्म का एक गुप्त संदेश है: विजय को भारत का अंतिम नायक बनाया जा रहा है, ताकि लोग राजनीति से भागकर फिल्मों में खो जाएं। यह एक जानबूझकर बनाया गया विचारधारात्मक अभियान है।
सितंबर 13, 2024 at 15:01
Hardeep Kaur
अगर आप विजय के अभिनय के बारे में नहीं जानते, तो ये फिल्म आपके लिए नहीं है। लेकिन अगर आप उनके अभिनय को समझते हैं, तो ये फिल्म आपके दिल को छू जाएगी।
सितंबर 15, 2024 at 08:47
Abhi Patil
विजय के अभिनय की तुलना एक बार जब आप रॉबर्ट डी नीरो या मार्लोन ब्रैंडो के काम से करेंगे, तो आपको पता चल जाएगा कि ये सब केवल एक भावनात्मक विपणन योजना है - जिसमें दर्शकों को उनकी आवाज़, उनकी चाल, उनकी आँखों के भावों के लिए बहुत अधिक भुगतान करने को मजबूर किया जाता है। यह फिल्म न तो कला है, न ही साहित्य - यह एक उत्पाद है, जिसका निर्माण एक बाजार अनुमान के आधार पर हुआ है।
सितंबर 15, 2024 at 22:02
Prerna Darda
ये फिल्म एक नए युग की शुरुआत है - जहां नायक बनने के लिए आपको बस एक अभिनेता होना पर्याप्त है, न कि कोई विचार। विजय के अभिनय की शक्ति इस बात को दर्शाती है कि भारतीय सिनेमा अब भावनाओं के बजाय इमेज के लिए जीत रहा है।
सितंबर 16, 2024 at 12:09
rohit majji
विजय के लिए ये फिल्म एक दिल का तोहफा है ❤️ बस देखो और खुश रहो! 🎬✨
सितंबर 18, 2024 at 02:39
Hitendra Singh Kushwah
मैंने देखा कि फिल्म के अंत में विजय का चेहरा थोड़ा थका हुआ लग रहा था। शायद वो भी जानते थे कि ये सब एक बड़ा नाटक है।
सितंबर 19, 2024 at 04:59
Devi Rahmawati
अगर विजय राजनीति में जाने वाले हैं, तो इस फिल्म को उनका अंतिम नाटक कहना चाहिए। एक अंतिम बयान, जिसमें उन्होंने अपने दर्शकों को एक बार और अपनी शक्ति से जोड़ा।
सितंबर 20, 2024 at 09:42
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