चैत्र नवरात्रि 2025: माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और इच्छा पूर्ति की आशा
Posted on सित॰ 27, 2025 by Devendra Pandey

चैत्र नवरात्रि 2025 का महत्त्व और इतिहास
हिंदू कैलेंडर के अनुसार नया साल चैत्र महीने की शुरुआत में आता है, और इसी पर्व को चैत्र नवरात्रि 2025 कहा जाता है। यह नौ दिन का त्योहार माँ दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित है, जो शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक विभिन्न गुणों का प्रतीक हैं। पुराणों में वर्णित है कि इस त्यौहार की उत्पत्ति देवी महात्म्य में मिली कहानी से है, जहाँ दैत्य महिषासुर को केवल एक नारी ही पराजित कर सकती थी। त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ने मिलकर दुर्गा का अवतार लिया, और नौ रातों तक संघर्ष कर अंत में दानव को हार मानने पर मजबूर किया।
भौगोलिक रूप से यह त्यौहार उत्तर भारत में विशेष रूप से जोश से मनाया जाता है, क्योंकि यहाँ नए साल की शुरुआत को शरद ऋतु के साथ नहीं बल्कि वसन्त ऋतु में मनाया जाता है। नवरात्रि के साथ ही राम नवमी भी आता है, जिससे दो पवित्र घटनाओं का संगम होता है।

नौ दिनों की पूजा, रंग और विशेष प्रसाद
हर दिन के लिए एक विशेष देवी का पूजन, उपयुक्त रंग और विशेष भोग तय किया गया है। नीचे प्रत्येक दिन के मुख्य विशेषताओं का सारांश दिया गया है:
- पहला दिन (30 मार्च) – शैलपुत्री: पर्व का आरम्भ घाटस्थापना से होता है। शैलपुत्री को सफेद या हरे रंग के वस्त्र पहनाकर पूजा किया जाता है। प्रसाद में फल, चावल और शुद्ध दूध शामिल होते हैं।
- दूसरा दिन (31 मार्च) – ब्रह्मचारिणी: काली या काली-पीले रंग का परिधान पहना जाता है। इस दिन उपवास में सीमित अनाज और काजू, बादाम जैसे सूखे मेवे प्रमुख होते हैं।
- तीसरा दिन (1 अप्रैल) – चंद्रघंटा: नीले रंग का उपयोग किया जाता है। भोग में भरवां पनीर, मिठाई और केले के पत्ते पर पकाया गया व्यंजन रखा जाता है।
- चौथा दिन (2 अप्रैल) – कुष्मांडा: सुनहरा या पीला रंग अपनाया जाता है। इस दिन सूर्य के सम्मान में हल्दी, शहद और चावल के लड्डू अर्पित किए जाते हैं।
- पाँचवाँ दिन (3 अप्रैल) – स्कंदमाता: लाल रंग के वस्त्र लोकप्रिय होते हैं। प्रसाद में मट्ठा, पनीर के सब्जी और लड्डू शामिल होते हैं।
- छठा दिन (4 अप्रैल) – कात्यायनी: गहरे नीले रंग की पोशाक पहनी जाती है। इस दिन के भोग में कुटिया, पीठा और खजूर के साथ शर्करा के टुकड़े रखे जाते हैं।
- सातवाँ दिन (5 अप्रैल) – कालरात्रि: काली वस्त्र और काली चादर प्रमुख होते हैं। भोग में कड़वी दाल, काला चना और काली मिर्च डालकर बनाया गया व्यंजन होता है।
- आठवां दिन (6 अप्रैल) – महागौरी: सफेद या पीले रंग की पोशाक धारण की जाती है। इस दिन कन्या पूजा (कन्यापुजन) की विशेषता है, जहाँ युवा लड़कियों को देवी का स्वरूप माना जाता है। प्रसाद में सफेद बेसन के पकौड़े, सेवइयां और दूध के केसरी के साथ चावल के खीर होती है।
- नौवाँ दिन (7 अप्रैल) – सिद्धिदात्री: नारंगी या लाल-पीले रंग के वस्त्र। इस दिन राम नवमी के साथ मिलकर जलेबी, पूड़ी, आलू भुजिया और केसर वाला रसगुल्ला अर्पित किया जाता है।
हर दिन के साथ भिन्न-भिन्न देवियों के लिए विशिष्ट मंत्र और पूजा विधि अपनाई जाती है, जिससे भक्तों के मन में श्रद्धा और भक्ति की गहराई बढ़ती है।
उपवास के नियम भी हर दिन के लिए अलग होते हैं। कुछ लोग केवल फल और दूध के साथ उपवास रखते हैं, जबकि अन्य पूरी रात जागरण (जागरन) करते हैं, भजन-कीर्तन सुनते हैं और कथा सुनाते हैं।
संगीत और नृत्य भी इस त्यौहार का अभिन्न हिस्सा हैं। कई गांव और शहरों में नाच-गाने, ढोल की थाप और भजन मंचन होते हैं, जिससे सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को मजबूती मिलती है।
नव वर्ष के इस शुभ समय में, कई लोग नई शुरुआत के लिए अपने सौदों, शॉपिंग या व्यापारिक योजनाओं को भी इस अवसर से जोड़ते हैं, यह मानते हुए कि माँ दुर्गा की कृपा से सभी काम सफल होंगे।