काशी विश्वनाथ मंदिर में लौरीन पॉवेल जॉब्स का दौरा और हिंदू परंपराओं का पालन
Posted on जन॰ 14, 2025 by मेघना सिंह

लौरीन पॉवेल जॉब्स का भारत दौरा
लौरीन पॉवेल जॉब्स, जो कि ऐप्पल कंपनी के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स की विधवा हैं, ने हाल ही में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का दौरा किया। यह दौरा उनके महाकुंभ मेला 2025 के दौरान भारत के प्रति श्रद्धा और सम्मान के प्रतीक के रूप में हुआ। महाकुंभ मेला, जो जनवरी से शुरू होकर फरवरी तक चलता है, ने पूरी दुनिया से करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित किया है।
शिवलिंग और परंपरागत नियमों का पालन
किसी महिला के लिए शिवलिंग को छूना का सवाल हो या फिर किसी विदेशी के लिए यह परंपरागत पूर्वानुमति का विषय हो, लौरीन पॉवेल जॉब्स के साथ भी यही हुआ। उन्हें शिवलिंग को छूने की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि यह परंपरा में शामिल नियमों के खिलाफ था। भारतीय आध्यात्मिक और धार्मिक स्वाभिमान का मान अनवरत चलता आ रहा है और उसका पालन किया जाना आवश्यक समझा जाता है।
स्वामी कैलाशानंद गिरी, जो आनंदमुया अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर हैं, ने इस पर जोर देते हुए कहा कि परंपरा का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। शिवलिंग का स्पर्श करने की मनाही गैर-हिंदुओं के लिए होती है, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसकी गरिमा कायम रहे।
प्रसाद और पूरी पूजा में भागीदारी
हालांकि, लौरीन पॉवेल जॉब्स को मंदिर में अन्य लाभकारी कार्यक्रमों में भाग लेने की अनुमति दी गई थी। उन्हें वहां प्रसाद और पुष्पमाला भी दी गई। इस प्रकार, उन्होंने श्रद्धापूर्वक भारतीय परंपराओं का सम्मान किया और अन्य पूजा आराधना में भी शामिल रहीं।
इसके साथ ही, उन्होंने गंगा नदी में स्नान करने का इरादा भी जताया था। उन्हें हिन्दू नाम 'कमला' प्रदान किया गया, जो भारतीय संस्कृति की ओर उनके झुकाव और आत्मीयता का सूचक था। उन्होंने भारतीय आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करते हुए इस वार्षिक धार्मिक महोत्सव के महत्व को समझा।
महाकुंभ मेला: अद्भुत सौंदर्य और आस्था का संगम
महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन एक बहुत ही बड़ा धार्मिक आंदोलन है, जिसमें लगभग 45 करोड़ श्रद्धालुओं के भागीदारी की उम्मीद की जा रही है। इस पर्व के अंतर्गत मुख्य स्नान के दिन जनवरी 14 (मकर संक्रांति), जनवरी 29 (मौनी अमावस्या), और फरवरी 3 (बसंत पंचमी) आयोजित किए जाएंगे।
मेला, जहां इतने विशाल स्तर पर धार्मिक गतिविधियों का आयोजन होता है, वह न केवल धार्मिक आयोजनों का केंद्र है बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। अलग-अलग संस्कृतियों और पृष्ठभूमि से आने वाले श्रद्धालु एक स्थान पर अपनी मान्यताओं और आस्थाओं को साझा करते हैं।
इस महाकुंभ के दौरान, अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे, जहां कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। यह आयोजन सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि संस्कृति और कला का भी एक विशाल मंच है।