काशी विश्वनाथ मंदिर में लौरीन पॉवेल जॉब्स का दौरा और हिंदू परंपराओं का पालन

13जनवरी
काशी विश्वनाथ मंदिर में लौरीन पॉवेल जॉब्स का दौरा और हिंदू परंपराओं का पालन

लौरीन पॉवेल जॉब्स का भारत दौरा

लौरीन पॉवेल जॉब्स, जो कि ऐप्पल कंपनी के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स की विधवा हैं, ने हाल ही में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का दौरा किया। यह दौरा उनके महाकुंभ मेला 2025 के दौरान भारत के प्रति श्रद्धा और सम्मान के प्रतीक के रूप में हुआ। महाकुंभ मेला, जो जनवरी से शुरू होकर फरवरी तक चलता है, ने पूरी दुनिया से करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित किया है।

शिवलिंग और परंपरागत नियमों का पालन

किसी महिला के लिए शिवलिंग को छूना का सवाल हो या फिर किसी विदेशी के लिए यह परंपरागत पूर्वानुमति का विषय हो, लौरीन पॉवेल जॉब्स के साथ भी यही हुआ। उन्हें शिवलिंग को छूने की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि यह परंपरा में शामिल नियमों के खिलाफ था। भारतीय आध्यात्मिक और धार्मिक स्वाभिमान का मान अनवरत चलता आ रहा है और उसका पालन किया जाना आवश्यक समझा जाता है।

स्वामी कैलाशानंद गिरी, जो आनंदमुया अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर हैं, ने इस पर जोर देते हुए कहा कि परंपरा का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। शिवलिंग का स्पर्श करने की मनाही गैर-हिंदुओं के लिए होती है, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसकी गरिमा कायम रहे।

प्रसाद और पूरी पूजा में भागीदारी

हालांकि, लौरीन पॉवेल जॉब्स को मंदिर में अन्य लाभकारी कार्यक्रमों में भाग लेने की अनुमति दी गई थी। उन्हें वहां प्रसाद और पुष्पमाला भी दी गई। इस प्रकार, उन्होंने श्रद्धापूर्वक भारतीय परंपराओं का सम्मान किया और अन्य पूजा आराधना में भी शामिल रहीं।

इसके साथ ही, उन्होंने गंगा नदी में स्नान करने का इरादा भी जताया था। उन्हें हिन्दू नाम 'कमला' प्रदान किया गया, जो भारतीय संस्कृति की ओर उनके झुकाव और आत्मीयता का सूचक था। उन्होंने भारतीय आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करते हुए इस वार्षिक धार्मिक महोत्सव के महत्व को समझा।

महाकुंभ मेला: अद्भुत सौंदर्य और आस्था का संगम

महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन एक बहुत ही बड़ा धार्मिक आंदोलन है, जिसमें लगभग 45 करोड़ श्रद्धालुओं के भागीदारी की उम्मीद की जा रही है। इस पर्व के अंतर्गत मुख्य स्नान के दिन जनवरी 14 (मकर संक्रांति), जनवरी 29 (मौनी अमावस्या), और फरवरी 3 (बसंत पंचमी) आयोजित किए जाएंगे।

मेला, जहां इतने विशाल स्तर पर धार्मिक गतिविधियों का आयोजन होता है, वह न केवल धार्मिक आयोजनों का केंद्र है बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। अलग-अलग संस्कृतियों और पृष्ठभूमि से आने वाले श्रद्धालु एक स्थान पर अपनी मान्यताओं और आस्थाओं को साझा करते हैं।

इस महाकुंभ के दौरान, अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे, जहां कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। यह आयोजन सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि संस्कृति और कला का भी एक विशाल मंच है।

टिप्पणि

Chirag Desai
Chirag Desai

अच्छा लगा कि उन्होंने प्रसाद लिया। थोड़ा सा सम्मान तो देना ही पड़ता है।

जनवरी 15, 2025 at 22:47

Uday Teki
Uday Teki

वाह 😍 ये तो बहुत अच्छी बात है कि वो गंगा में नहाने वाली हैं। भारत का दिल तो अभी भी दुनिया को छू रहा है ❤️

जनवरी 17, 2025 at 20:38

Prerna Darda
Prerna Darda

शिवलिंग के स्पर्श पर प्रतिबंध केवल एक पूर्वाग्रह नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक एन्ट्रोपी का नियम है। जब एक वस्तु को अनंत ऊर्जा का बिंदु माना जाता है, तो उसकी संवेदनशीलता को नियंत्रित करना ही संस्कृति का अभिन्न अंग होता है। ये नियम अंधविश्वास नहीं, बल्कि संरक्षण का एक जटिल सामाजिक एल्गोरिथ्म है।

जनवरी 18, 2025 at 05:56

Shubham Yerpude
Shubham Yerpude

ये सब बकवास है। लौरीन को क्यों अनुमति दी जाए? ये लोग हर चीज में अपना निशान छोड़ना चाहते हैं। ये मंदिर उनके लिए टूरिस्ट स्पॉट नहीं है। ये सब एक बड़ा नाटक है।

जनवरी 19, 2025 at 00:53

Haizam Shah
Haizam Shah

अरे भाई, इतना झगड़ा क्यों? अगर वो भारत की आस्था का सम्मान कर रही हैं, तो उन्हें आने दो। अगर तुम्हारी आस्था इतनी कमजोर है कि किसी विदेशी के आने से डर लग रहा है, तो तुम्हारी आस्था नहीं, तुम्हारा अहंकार डर रहा है।

जनवरी 19, 2025 at 22:03

Hardeep Kaur
Hardeep Kaur

मैंने सुना है कि बहुत से विदेशी भी अपने आप को भक्त बनाते हैं, और उन्हें शिवलिंग के बाहर नमन करने की अनुमति होती है। ये नियम किसी को बाहर नहीं रखने के लिए हैं, बल्कि श्रद्धा की गहराई को संरक्षित रखने के लिए हैं।

जनवरी 21, 2025 at 00:23

Abhi Patil
Abhi Patil

लौरीन पॉवेल जॉब्स के लिए यह एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव था, जिसका विश्लेषण करने के लिए हमें एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है - जिसमें सांस्कृतिक अभिजात्यता, धार्मिक संरचनाओं की अस्थिरता, और पश्चिमी उपनिवेशवादी अनुकरण के तात्कालिक प्रभावों को शामिल किया जाना चाहिए। उनके द्वारा गंगा में स्नान करने का निर्णय, एक नए आध्यात्मिक वैश्वीकरण का संकेत है, जहां धर्म का व्यक्तिगत अनुभव औपचारिक अधिकारों को अतिक्रमण करता है। यह न केवल एक आध्यात्मिक घटना है, बल्कि एक सांस्कृतिक एक्सप्लॉजन है।

जनवरी 21, 2025 at 21:53

rohit majji
rohit majji

ye toh bhot badi baat h bro!! 🙏🔥 kamla naam diya gya toh kya baat hai... bhai yeh toh pura dil se man liya gya hai!!

जनवरी 23, 2025 at 11:22

Shardul Tiurwadkar
Shardul Tiurwadkar

अरे यार, जो लोग शिवलिंग छूने के लिए लड़ रहे हैं, वो शायद अपने घर में भी अपनी बीवी के साथ बात नहीं कर पाते। एक विदेशी महिला को नमन करने की अनुमति देना तो इतना बड़ा मुद्दा क्यों बन गया? ये सब लोग अपने अहंकार को धर्म के नाम पर छुपा रहे हैं।

जनवरी 25, 2025 at 09:44

Devi Rahmawati
Devi Rahmawati

परंपरा का सम्मान तो आवश्यक है, लेकिन उसके साथ समझौता भी जरूरी है। जब एक व्यक्ति भारत की आध्यात्मिकता को अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए आती है, तो उसे केवल निषेध नहीं, बल्कि एक दिशा भी दी जानी चाहिए। उन्हें नाम देना, प्रसाद देना, और गंगा में स्नान करने की अनुमति देना - ये सब एक शिक्षाप्रद दृष्टिकोण है।

जनवरी 26, 2025 at 19:42

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