लाडकी बहन योजना में 26 लाख फर्जी लाभार्थी पकड़े गए, महाराष्ट्र सरकार ने राज्यव्यापी जांच और अनिवार्य e-KYC शुरू किया

20सितंबर

Posted on सित॰ 20, 2025 by Devendra Pandey

लाडकी बहन योजना में 26 लाख फर्जी लाभार्थी पकड़े गए, महाराष्ट्र सरकार ने राज्यव्यापी जांच और अनिवार्य e-KYC शुरू किया

26.34 लाख फर्जी नाम, 14 हजार पुरुषों को 21 करोड़: लाडकी बहन योजना की सबसे बड़ी जांच

महाराष्ट्र सरकार ने लाडकी बहन योजना में अब तक का सबसे कड़ा ऑडिट शुरू किया है। महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये देने वाली इस योजना में 26.34 लाख अपात्र लोगों के नाम दर्ज पाए गए हैं। हैरानी की बात यह है कि इनमें तकरीबन 14,000 पुरुष भी शामिल हैं, जिन्हें 10 महीनों में करीब 21 करोड़ रुपये का भुगतान हो गया। 2,000 से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों द्वारा भी योजना का लाभ उठाने के संकेत मिले हैं।

योजना जुलाई 2024 में महायुति सरकार ने शुरू की थी। 21 से 65 साल की उन महिलाओं को इसका लाभ मिलता है जिनकी पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये सालाना से कम है। रजिस्ट्रेशन तेजी से बढ़कर 2.25 करोड़ से ऊपर पहुंच गया। नवंबर 2024 के विधानसभा चुनावों में इसे सत्ता बरकरार रखने वाले कारकों में गिना गया। लेकिन भारी संख्या में अपात्र लाभार्थियों का खुलासा होते ही सरकार ने राज्यव्यापी सत्यापन और तकनीकी जांच का आदेश दे दिया।

महिला एवं बाल विकास विभाग के निर्देश पर सभी लाभार्थियों के लिए आधार-आधारित e-KYC अनिवार्य कर दी गई है। 18 सितंबर 2025 के शासकीय निर्णय के तहत हर पंजीकृत महिला को दो महीने के भीतर प्रमाणीकरण पूरा करना होगा। समयसीमा में e-KYC न कराने वालों का भुगतान रोका जाएगा और जरूरत पड़ी तो कानूनी कार्रवाई भी होगी।

सूत्रों के मुताबिक, शुरुआती महीनों में आवेदन प्रक्रिया आत्म-घोषणा पर आधारित रही। चुनावी दौर में तेज़ प्रसंस्करण के चलते कई बारीक जांचें छूट गईं। अगस्त 2025 में राज्य की आईटी इकाई ने लगभग 26 लाख संदिग्ध नामों की सूची सौंपी, जिसके बाद विभागीय जांच तेज हुई। जालना में अकेले करीब 70,000 लाभार्थी जांच के दायरे में हैं। कई जिलों में फील्ड वेरिफिकेशन शुरू हो चुका है और संदिग्ध लाभार्थियों की सूची स्थानीय टीमों को सौंप दी गई है।

आर्थिक असर भी छोटा नहीं है। यदि 26.34 लाख अपात्र नाम हटते हैं तो हर महीने तकरीबन 395 करोड़ रुपये की बचत संभव है (1,500 रुपये × 26.34 लाख)। समझिए, 2.25 करोड़ रजिस्ट्रेशन सक्रिय रहने पर मासिक देनदारी सैद्धांतिक रूप से 3,375 करोड़ रुपये तक बैठती है। ऐसे में हर एक फर्जी नाम राज्य के खर्च पर सीधा बोझ है।

अब तक की जांच में अनियमितताओं के कुछ बड़े पैटर्न साफ दिखे—पुरुषों का गलत रजिस्ट्रेशन, पात्रता सीमा से ज्यादा आय, आयु सीमा से बाहर आवेदन, सरकारी नौकरी के बावजूद लाभ लेना, एक ही व्यक्ति का अलग-अलग खातों से दावा, और आधार-बैंक खाते के बीच मिसमैच। विभाग ने इन श्रेणियों को हाई-रिस्क टैग देकर प्राथमिकता से जांच में लगाया है।

लाभार्थियों के लिए क्या बदलेगा, सरकार का अगला रोडमैप

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महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे ने साफ किया है कि e-KYC से पारदर्शिता बढ़ेगी और सही पात्र महिलाओं का भुगतान बिना रुकावट जारी रहेगा। सरकार ने निर्देश दिए हैं कि आगे से वार्षिक e-KYC अनिवार्य रहेगी ताकि लाभार्थी डेटाबेस अपडेट रहे और दुहराव या फर्जीवाड़े की गुंजाइश कम हो। विभाग इसे अन्य सरकारी योजनाओं से जोड़कर एकीकृत कल्याण प्रणाली बनाने की तरफ बढ़ रहा है, ताकि पात्र महिलाओं को कई योजनाओं का लाभ एक ही प्रमाणीकरण से मिल सके।

जमीनी स्तर पर यह प्रक्रिया कई चरणों में चल रही है। जिला महिला एवं बाल विकास कार्यालयों ने वार्ड और ग्राम स्तर पर सूचियां साझा की हैं। आशा/आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और स्थानीय प्रशासन घर-घर दस्तावेज मिलान कर रहे हैं। जहां संदेह ज्यादा है, वहां बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और बैंक खाते की जांच साथ-साथ हो रही है। जालना जैसे जिलों में विशेष टीमें बनाई गई हैं, क्योंकि वहां संदिग्ध आवेदनों का घनत्व ज्यादा मिला।

जो भी लाभार्थी हैं, उनके लिए सबसे जरूरी काम e-KYC समय पर पूरा करना है। प्रक्रिया सरल रखी गई है, लेकिन देरी का मतलब भुगतान रुकना हो सकता है। विभाग ने पोर्टल पर भीड़ कम करने के लिए स्लॉट-आधारित प्रमाणीकरण का विकल्प दिया है और स्थानीय सहायता केंद्रों से मदद लेने को कहा है।

लाभार्थियों को सामान्यतः ये कदम उठाने होंगे:

  • आधार से मोबाइल नंबर और बैंक खाते की सही सीडिंग जांचें; जरूरत हो तो अपडेट कराएं।
  • आधिकारिक पोर्टल पर लॉग-इन कर के e-KYC पूरा करें—OTP या बायोमेट्रिक के जरिए प्रमाणीकरण करें।
  • परिवार की आय, आयु और वैवाहिक/परिवारिक स्थिति से जुड़े दस्तावेज डिजिटल रूप में तैयार रखें।
  • यदि ऑनलाइन दिक्कत हो तो नजदीकी सहायता केंद्र/वार्ड कार्यालय/आंगनवाड़ी के माध्यम से ऑफलाइन सहायता लें।
  • e-KYC की रसीद/स्वीकृति का स्क्रीनशॉट या प्रिंट सुरक्षित रखें, ताकि भुगतान में विलंब होने पर प्रमाण दिखा सकें।

वसूली और जवाबदेही पर भी सरकार सख्त दिख रही है। जहां धोखाधड़ी साबित होगी, वहां गलत भुगतान की रिकवरी और आपराधिक कार्रवाई दोनों पर विचार होगा। विभाग उन मामलों को प्राथमिकता देगा जिनमें जानबूझकर गलत जानकारी दी गई, फर्जी दस्तावेज लगाए गए, या किसी तीसरे पक्ष ने कमीशन के लिए फर्जी रजिस्ट्रेशन कराए। पुरुषों को हुए 21 करोड़ के गलत भुगतान का मामला मिसाल बन सकता है—यह दिखाता है कि डेटाबेस की क्रॉस-चेकिंग कितनी जरूरी है।

तकनीकी स्तर पर e-KYC के साथ कई परतों की स्क्रीनिंग लागू की जा रही है—जैसे एक व्यक्ति-एक लाभार्थी नियम, आधार-बैंक खाता मिलान, आयु और आय मानदंड की स्वचालित जांच, और डुप्लिकेट/बहु-पंजीकरण पर रीयल-टाइम अलर्ट। इससे नए आवेदन में फर्जीवाड़े की गुंजाइश घटेगी और पुरानी सूची की सफाई आसान होगी।

राजनीतिक तौर पर यह कदम सरकार के लिए दोधारी तलवार है। एक तरफ, गलत भुगतान रोकना वित्तीय अनुशासन और प्रशासनिक पारदर्शिता का संदेश देता है। दूसरी तरफ, अगर वैध लाभार्थियों को अस्थायी दिक्कतें आईं—जैसे भुगतान में देरी—तो विपक्ष इसे मुद्दा बना सकता है। इसलिए विभाग ने जिलों को निर्देश दिया है कि वैध लाभार्थियों का भुगतान बाधित न हो, और संदेह की स्थिति में भी त्वरित अपील और समाधान की व्यवस्था रहे।

जांच का पैमाना बड़ा है और समय भी सीमित। इसलिए कई जगह शाम और छुट्टी के दिनों में भी प्रमाणीकरण कैम्प लगाए जा रहे हैं। विभाग ने जिला अधिकारियों से साप्ताहिक प्रगति रिपोर्ट मांगी है—कितने लाभार्थियों का e-KYC हुआ, कितने मामलों में दस्तावेज लंबित हैं, और किन वजहों से भुगतान रोका गया। यही डेटा आगे की नीति तय करेगा—कितने नाम हटाने हैं, किन मामलों में सशर्त मंजूरी देनी है, और कहां सिस्टम को और कड़ा करना है।

यदि यह अभियान तय समय में पूरा हो गया, तो राज्य के कल्याण बजट पर तात्कालिक राहत मिल सकती है। साथ ही, वार्षिक e-KYC और मल्टी-लेयर स्क्रीनिंग जैसी प्रक्रियाएं भविष्य के लिए मानक बनेंगी। बड़ी तस्वीर यही है—योजना का उद्देश्य जस का तस रहे, लेकिन संसाधन सही हाथों तक पहुंचे। पात्र महिलाओं के लिए यह सुरक्षा कवच है; सिस्टम की सफाई उसी कवच को मजबूत करने की कोशिश है।

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