चार दिन पहले तक जब रुपया 88.50 के आसपास था, तो बाजार में आरबीआई की ब्याज दर कटौती की उम्मीदें जीवित थीं। लेकिन आज, भारतीय रिजर्व बैंक की अगली नीति बैठक से ठीक पहले, रुपया भारत के बाजार में 89.93 के करीब पहुँच गया — एक ऐसा स्तर जिसे पिछले साल भी नहीं छूआ गया था। यह गिरावट सिर्फ एक दिन की नहीं, बल्कि पूरे साल की एक लगातार गिरावट का हिस्सा है।
क्यों गिर रहा है रुपया?
दरअसल, रुपया ने पिछले 12 महीनों में डॉलर के मुकाबले 6.32% का नुकसान झेला है। अगर आप इसे महीने के हिसाब से देखें, तो पिछले 30 दिनों में भी यह 1.67% गिरा है। Trading Economics के अनुसार, 4 दिसंबर 2025 को डॉलर-रुपया दर 89.9270 पर रही, जबकि अन्य स्रोतों ने इसे 90.0310 तक दर्ज किया। यह अंतर क्यों? क्योंकि बाजार अलग-अलग ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स पर अलग-अलग दरों पर काम करता है। लेकिन एक बात स्पष्ट है — रुपया कमजोर है।
दरअसल, इस साल के शुरुआती महीनों में रुपया 86 के आसपास था। जनवरी में औसत दर 86.23 थी, लेकिन अब दिसंबर के पहले चार दिनों में यह बढ़कर 89.47 हो गया। यह एक लगातार और अनरोकी गिरावट है। अगर आप देखें, तो अगस्त से लेकर अब तक, हर महीने रुपया ने डॉलर के सामने अपनी जगह खो दी है।
आरबीआई की बैठक से पहले बाजार का बेचैन होना
अब सबकी नजर आरबीआई की नीति बैठक पर है, जो 5 दिसंबर 2025 को होने वाली है। पिछले कुछ महीनों तक बाजार का मानना था कि आरबीआई ब्याज दर कम करेगी — क्योंकि मुद्रास्फीति रिकॉर्ड निम्न स्तर पर है। आरबीआई गवर्नर मल्होत्रा ने भी इस बात पर जोर दिया था कि भारत में मुद्रास्फीति अब इतनी कम है कि ब्याज दर कम करने का अवसर मिल गया है।
लेकिन यहाँ ट्विस्ट है। भारत की अर्थव्यवस्था ने पिछले तिमाही में 7.2% का तेज़ विकास दर्ज किया। इसके अलावा, विदेशी निवेशकों के पास भारतीय बाजारों में पैसा लगाने की इच्छा बनी हुई है। इन दोनों कारणों से बाजार का मानना है कि आरबीआई अब ब्याज दर कम नहीं करेगी — बल्कि शायद इसे स्थिर रखे।
डॉलर की मजबूती का असर
रुपया कमजोर हो रहा है, लेकिन यह सिर्फ भारत की वजह से नहीं। अमेरिकी डॉलर पूरी दुनिया में मजबूत है। फेडरल रिजर्व ने अभी तक ब्याज दर कम नहीं की है, और अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था मानी जाती है। इसका असर सीधे भारत पर पड़ रहा है।
इस साल के अंत तक, विश्लेषकों का अनुमान है कि डॉलर-रुपया दर 89.24 तक जा सकती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 12 महीनों में यह दर 88.01 तक गिर सकती है। लेकिन यह तभी संभव है अगर आरबीआई नीति बदलती है, या विदेशी निवेशक वापस आते हैं।
किसे हो रहा है नुकसान?
रुपया कमजोर होने का सबसे सीधा असर आयात पर पड़ता है। तेल, सोना, इलेक्ट्रॉनिक्स — सब कुछ महंगा हो रहा है। एक व्यापारी जो चीन से स्मार्टफोन आयात करता है, उसके लिए अब एक फोन खरीदने में लगभग 200 रुपये ज्यादा खर्च हो रहे हैं। यह दाम आम आदमी तक पहुँच रहे हैं।
साथ ही, विदेशों में काम करने वाले भारतीय मजदूरों को भी नुकसान हो रहा है। अगर वह अमेरिका में 1000 डॉलर कमाता है, तो पिछले साल उसे 86,881 रुपये मिलते थे। अब वही 1000 डॉलर सिर्फ 89,930 रुपये दे रहा है। लगभग 3000 रुपये का घाटा।
क्या रुपया अब बच जाएगा?
कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि आरबीआई अब बाजार में डॉलर बेचकर रुपया खरीद सकती है — यानी विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करके। लेकिन यह एक अस्थायी इलाज है। अगर आरबीआई ब्याज दर कम नहीं करती, तो बाजार को लगेगा कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में सफल है। और फिर विदेशी निवेशक वापस आ सकते हैं।
दूसरी ओर, अगर आरबीआई ब्याज दर कम कर देती है, तो रुपया और गिर सकता है। लेकिन विकास को बढ़ावा मिल सकता है। यही तो आरबीआई के सामने वह दुविधा है — ब्याज दर कम करें तो रुपया गिरेगा, बढ़ाएं तो विकास धीमा हो जाएगा।
क्या अगले साल बेहतर होगा?
अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था में शांति आती है, अगर अमेरिका की ब्याज दरें गिरती हैं, और अगर भारत अपने निर्यात को बढ़ा सकता है — तो 2026 में रुपया बहुत अच्छा हो सकता है। लेकिन अभी तक की स्थिति बताती है कि यह एक लंबी लड़ाई है। आरबीआई की अगली बैठक का फैसला शायद भारत के आर्थिक भविष्य का रास्ता तय कर देगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
रुपया कमजोर होने का सीधा असर किस पर पड़ता है?
रुपया कमजोर होने से आयातित सामान जैसे तेल, सोना, इलेक्ट्रॉनिक्स और दवाएँ महंगी हो जाती हैं। इसका सीधा असर आम लोगों के खर्च पर पड़ता है। विदेशों में काम करने वाले भारतीय मजदूरों को भी अपनी कमाई का कम हिस्सा मिलता है।
आरबीआई रुपया बचाने के लिए क्या कर सकती है?
आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचकर रुपया खरीद सकती है, लेकिन यह सिर्फ अस्थायी उपाय है। लंबे समय तक चलने के लिए, ब्याज दरों में संतुलन और निर्यात बढ़ाने की जरूरत है। अगर ब्याज दर कम होगी, तो रुपया और गिर सकता है।
2025 में रुपया कितना कमजोर हुआ?
2025 में रुपया डॉलर के मुकाबले 5.09% कमजोर हुआ। जनवरी में औसत दर 86.23 थी, जबकि दिसंबर के पहले चार दिनों में यह 89.47 तक पहुँच गया। यह साल भर की सबसे बड़ी गिरावट थी।
रुपया की गिरावट का क्या संकेत है?
यह संकेत है कि भारत की आर्थिक वृद्धि तेज है, लेकिन विदेशी निवेश अभी भी डॉलर की ओर झुका हुआ है। इसका मतलब है कि विदेशी निवेशक भारत में लंबे समय तक पैसा नहीं लगाना चाहते — जब तक कि रुपया की स्थिरता नहीं बन जाती।
क्या आरबीआई ब्याज दर कम करेगी?
अधिकांश विश्लेषक मानते हैं कि नहीं। तेज आर्थिक विकास और डॉलर की मजबूती के कारण, आरबीआई ब्याज दर स्थिर रखने की उम्मीद है। अगर वह दर कम कर देती है, तो रुपया और गिर सकता है।
2026 में रुपया कैसा रहेगा?
विश्लेषकों का अनुमान है कि 2026 के अंत तक रुपया 88.01 तक बढ़ सकता है, अगर विदेशी निवेश बढ़े और अमेरिकी ब्याज दरें गिरें। लेकिन यह सब आरबीआई की नीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है।