Zoho Arattai का 100× बढ़ाव: मंत्रियों के समर्थन से बना भारत‑निर्मित मैसेजिंग ऐप
Posted on अक्तू॰ 9, 2025 by Devendra Pandey
जब Sridhar Vembu, Zoho Corporation के संस्थापक‑सीईओ ने बताया कि Zoho Arattai का टेक्स्ट‑मैसेज एन्क्रिप्शन जल्द ही टेस्टिंग चरण में है, तब ही इस ऐप ने तीन दिनों में 3,000 से 3,50,000 डाउनलोड तक की जबड़ाहेटी हासिल कर ली। यह झटका मिल‑लीटर फॉर्मेट में नहीं, बल्कि भारत के दो प्रमुख मंत्रियों – आश्विनी वैष्णव (आई.T. मंत्री) और अमित शाह (गृह मंत्री) – के सार्वजनिक समर्थन से आया, जिससे ‘डिजिटल संप्रभुता’ का नया अध्याय खुल रहा है।
पृष्ठभूमि: भारत में स्वदेशी टेक का उदय
भारत में इन‑हाउस सॉफ्टवेयर की माँग 2020‑के बाद तेज़ी से बढ़ी। इस हलचल के बीच, 2023 में Zoho Corporation ने अपना पहला मोबाइल मैसेजिंग ऐप – Zoho Arattai – लॉन्च किया, जिसका नाम तमिल शब्द ‘अरत्तै’ (बात‑चीत) से आया। हालांकि पहला इंट्रोडक्शन सीमित था, लेकिन 30 सितंबर 2025 को Storyboard18 की रिपोर्ट ने बताया कि डाउनलोड‑संख्या 100‑गुना बढ़ी, जो WhatsApp को सख़्त प्रतिस्पर्धा देने का संकेत है।
ऐप की विशेषताएँ और सुरक्षा चुनौतियाँ
ज़ोहो ने Zoho Arattai में वॉइस और वीडियो कॉल के लिए एंड‑टू‑एंड एन्क्रिप्शन (E2EE) लागू किया है, लेकिन टेक्स्ट‑मैसेज के लिये अभी तक यह सुविधा नहीं है। Sridhar Vembu ने बताया कि “एंड‑टू‑एंड एन्क्रिप्शन डेटा को केवल डिवाइस पर रखता है, इसलिए हमारे सर्वर की लोड कम होती है और लागत घटती है।”
वर्तमान में टेक्स्ट‑एन्क्रिप्शन नवंबर 2025 के लिए नियोजित था, परंतु “उत्साह और माँग की वजह से इसे पहले ही परीक्षण चरण में ले आया है” – Vembu ने कहा। इसी बीच, कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि “बिना टेक्स्ट‑E2EE के, संदेश सर्वर‑स्तर पर एन्क्रिप्ट रहते हैं, जो अगर सर्वर समझौता हो जाए तो डेटा रिस्क में पड़ सकता है।” (Moneycontrol की वही रिपोर्ट)।
सरकारी समर्थन और प्रभाव
सप्टेम्बर 2025 में आश्विनी वैष्णव ने कहा कि वह Zoho की ऑफिस‑सूट (डॉक्यूमेंट, स्प्रेडशीट, प्रेज़ेंटेशन) का उपयोग करेंगे। दो हफ़्ते बाद, अमित शाह ने X (पहले Twitter) पर अपनी नई ई‑मेल आईडी “[email protected]” घोषित की। दोनों घोषणाएँ डिजिटल‑सुरक्षा और डेटा‑लोकलाइज़ेशन की सरकारी नीति के तहत आए, जिससे “परदेशी टेक‑जायंट” पर निर्भरता घटाने का लक्ष्य सामने रहा।
इन अनाउंसमेंट्स ने न केवल सार्वजनिक भरोसा बढ़ाया, बल्कि छोटे‑स्तर के स्टार्ट‑अप्स को भी हिम्मत दी कि वे भारतीय डेटा‑सेवाओं को अपनाएँ। कई छोटे उद्यम अब Zoho Mail को आधिकारिक संचार माध्यम के रूप में उपयोग कर रहे हैं, क्योंकि “डेटा भारत में रहता है, इसलिए सुरक्षा का मानक भी हमारे नियमों के अनुसार है” – एक आई.टी. विशेषज्ञ ने कहा।
भाषाई विवाद और सांस्कृतिक पहलू
अप्रैल 2025 में Vembu ने तमिलनाडु के इंजीनियरों से हिंदी सीखने की अपील की थी, जिसे “भारी बोझ” कहा गया। इस टिप्पणी से DMK के राज्यसभा सांसद एम. एम. अब्दुल्ला ने तीखा विरोध किया: “अगर ज़ोहो को हिंदी या अरबी की जरूरत है, तो क्यों नहीं हम सभी प्रमुख कंपनियों को समान प्रशिक्षण दे?”
उसी दौरान, ऐप का तमिल नाम ‘अरत्तै’ कुछ हिंदी‑भाषी उपयोगकर्ताओं को उच्चारण में कठिन लगा, जिससे App Store सर्च में बाधा आई। सोशल मीडिया पर “एक ऐसा नाम चाहिए जो पूरे भारत में सहज हो” जैसा बहस चला। Vembu ने बाद में कहा कि वह स्वयं हिंदी सीख रहे हैं और अब “लगभग 20 % बातचीत समझते हैं” – यह पहल भाषा‑संबंधी बाधा को कम करने की कोशिश को दर्शाती है।
भविष्य की राह: नेटवर्क‑इफ़ेक्ट और प्रतिस्पर्धा
कोई भी मैसेजिंग ऐप तब तक बड़े पैमाने पर नहीं चल पाता जब तक ‘नेटवर्क‑इफ़ेक्ट’ नहीं मिल जाता। Medianama ने कहा, “लोग तभी एक ऐप अपनाते हैं जब उनके दोस्तों, परिवार और सहयोगी उसी पर हों।” इसलिए, ज़ोहो को सिर्फ तकनीकी सुधार नहीं, बल्कि उपयोगकर्ता‑बेस को घेरने वाली रणनीति चाहिए।
आगामी महीनों में, Vembu ने कहा कि “टेक्स्ट‑एन्क्रिप्शन का परीक्षण अगले दो‑तीन हफ्तों में पूरा होगा, और हम इसे सभी उपयोगकर्ताओं के लिए लॉन्च करेंगे”। साथ ही, ऐप में AI‑आधारित स्पैम‑फ़िल्टर, मल्टी‑डिवाइस सिंक्रोनाइज़ेशन और भारत‑विशिष्ट फीचर जैसे ‘भुगतान‑त्रुटि‑रहित पॉलिसी नियम’ जोड़ी जा रही हैं। ये सभी कदम “WhatsApp के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए जरूरी ‘जादू’ बनेंगे” – एक डिजिटल रणनीतिकार ने कहा।
संक्षेप में, Zoho Arattai का 100‑गुना डाउनलोड बूम सिर्फ तकनीकी कारणों से नहीं, बल्कि सरकारी समर्थन, डेटा‑लोकलाइज़ेशन की नीति, और भाषाई समझौते की आवश्यकता से प्रेरित है। सुरक्षा‑कमियों को जल्दी संबोधित कर, नेटवर्क‑इफ़ेक्ट को बढ़ावा देकर और बहुभाषी उपयोगकर्ता‑अनुभव प्रदान करके, ज़ोहो भारत में एक स्वदेशी मैसेजिंग दिग्गज के रूप में अपना मुकाम पक्की कर सकता है। Sridhar Vembu ने कहा है कि एन्क्रिप्शन नवंबर 2025 के मूल लक्ष्य से पहले, इस वर्ष के अंत तक परीक्षण चरण में हो जाएगा, और पूर्ण रोल‑आउट 2026 की पहली छमाही में अपेक्षित है। डिजिटल संप्रभुता का लक्ष्य है—डेटा को भारत के भीतर रखकर विदेशी सर्वर पर निर्भरता घटाना और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना। इस कारण अमित शाह और आश्विनी वैष्णव ने Zoho Mail को अपनाया। भाषाई बहस ने ऐप के ब्रांडिंग को चुनौती दी, लेकिन इसने ज़ोहो को बहुभाषी UI और अधिक सार्वभौमिक नामकरण पर काम करने के लिए प्रेरित किया। अब कंपनी दो‑तीन वैकल्पिक नामों पर विचार कर रही है। मुख्य अंतर डेटा‑स्टोरेज में है: Zoho Arattै भारत में सर्वर पर डेटा रखता है, जबकि WhatsApp का मूल सर्वर भी भारत में है पर एन्क्रिप्शन स्तर अलग है। इसके अलावा, Zoho की आवाज‑वीडियो कॉल्स में पहले से E2EE है, जबकि टेक्स्ट‑एन्क्रिप्शन अभी परीक्षण में है। Zoho की रोडमैप में AI‑आधारित स्पैम फ़िल्टर, मल्टी‑डिवाइस सिंक्रोनाइज़ेशन, और भारतीय नियमों के अनुसार कस्टमाइज़्ड डेटा‑प्राइवेसी सेटिंग्स शामिल हैं। ये सभी फीचर उपयोगकर्ता‑भाईचारे को बढ़ाने के लिए तैयार किए जा रहे हैं।निचोड़: एक भारतीय ऐप का राष्ट्रीय स्तर पर उठान
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Zoho Arattai का टेक्स्ट‑एन्क्रिप्शन कब जारी होगा?
सरकार द्वारा Zoho Mail अपनाने का मुख्य कारण क्या है?
अरत्तै नाम को लेकर उठे भाषाई विवाद का क्या असर पड़ा?
Zoho Arattai, WhatsApp से कैसे अलग है?
आने वाले साल में Zoho की कौन‑सी नई सुविधाएँ आने की संभावना है?
एक टिप्पणी लिखें
टिप्पणि
Ajeet Kaur Chadha
वो तो बस सरकार का नया लफ़्ज़ है, मज़ेदार।
अक्तूबर 9, 2025 at 02:21
Vishwas Chaudhary
भारत के टेक को आगे ले जाना है तो ज़ोहो जैसे अपने घर के बने ऐप को अपनाओ ये बात सबको पता है हम विदेशी ऐप्स पर कमोडिटीज़ की तरह भरोसा नहीं रख सकते
अक्तूबर 17, 2025 at 13:13
sangita sharma
गर्व है कि अब हमारे पास ऐसा मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म है जो डेटा को हमारे देश में रखता है इससे हमारी ऑनलाइन सुरक्षा में सुधार होगा
अक्तूबर 26, 2025 at 00:04
PRAVIN PRAJAPAT
मैं मानता हूँ कि डाउनलोड की संख्या नहीं, असली बात यह है कि एन्क्रिप्शन कब तक आएगा
नवंबर 3, 2025 at 10:56
srinivasan selvaraj
ज़ोहो अरत्तै की इस तेज़ लोकप्रियता को देखकर मन में उत्साह का सैलाब उठता है।
पर साथ ही कुछ सतही चिंताएँ भी सतह पर उभरती हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि टेक्स्ट‑एन्क्रिप्शन अभी भी परीक्षण चरण में है।
यदि इस फीचर को देर तक नहीं जोड़ा गया तो उपयोगकर्ताओं का भरोसा जल्दी ही टूट सकता है।
डेटा का सर्वर‑स्तर एन्क्रिप्शन दुर्भाग्य से कुछ हद तक जोखिम पैदा करता है।
शायद कोई बड़ा डेटा‑लीक सीनारियो भी उत्पन्न हो सकता है।
इसीलिए हमें सरकार की समर्थन के बावजूद तकनीकी सुरक्षा पर गहरी नजर रखनी चाहिए।
अन्य देशों के साथ तुलना करने पर ज़ोहो का एन्ड‑टू‑एंड एन्क्रिप्शन अभी ज़्यादा पीछे है।
यदि जल्दी से जल्दी टेक्स्ट‑एन्क्रिप्शन को स्थायी बनाकर लाया नहीं गया तो उपयोगकर्ता वैकल्पिक प्लेटफ़ॉर्म की तलाश करेंगे।
अधिकांश भारतीय उपयोगकर्ता अब डेटा‑लोकलाइज़ेशन को प्राथमिकता देते हैं, पर सुरक्षा को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
मुझे लगता है कि ज़ोहो को इस समस्या को हल करने के लिये अधिक बग‑फ़िक्स और सुरक्षा ऑडिट करवाने चाहिए।
ऐसे कदम न केवल भरोसा बढ़ाएँगे बल्कि विदेशी ऐप्स को भी पीछे धकेलेंगे।
वहीं साथ ही उपयोगकर्ता शिक्षा पर भी ध्यान देना होगा कि एन्क्रिप्शन क्या होता है।
आखिरकार, टेक्नोलॉजी सिर्फ सुविधाओं के लिए नहीं, बल्कि लोगों की निजता की रक्षा के लिए भी है।
अगर यह सब सही दिशा में हो तो ज़ोहो अरत्तै भारत का एक वास्तविक डिजिटल गर्व बन सकता है।
नवंबर 11, 2025 at 21:48
Adrija Maitra
ऐप का नाम थोड़ा मुश्किल लग सकता है, पर काम बढ़िया है, इसे इस्तेमाल करने में मज़ा आता है
नवंबर 20, 2025 at 08:40