धर्म का व्यावहारिक पहलू अक्सर उपवास और कीर्तन जैसे रोज़मर्रा के कार्यों में झलकता है। उपवास, भोजन या विशेष खाद्य पदार्थों से परहेज कर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक शुद्धि की प्रक्रिया कई त्यौहारों में अनिवार्य है, चाहे वह महालक्ष्मी की पूजा हो या किसी विशेष व्रत का पालन। ऐसा इसलिए है क्योंकि उपवास धर्म में आत्म‑नियंत्रण का एक रूप है, जो आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है। इसी तरह, कीर्तन, धार्मिक गीतों और भजनों के साथ सामुदायिक गान सामाजिक जुड़ाव और आध्यात्मिक उन्नति को एक साथ लाता है। कई लोग कहते हैं कि कीर्तन के दौरान मन की शांति और ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है। इन दो प्रथाओं का मिश्रण धर्म को एक जीवित, चलती‑फिरती परंपरा बनाता है जो हर पीढ़ी को अपनी पहचान देती है। आगे के लेखों में आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न क्षेत्रीय रीति‑रिवाज, मौसमी त्यौहार और व्यक्तिगत अनुभव धर्म के व्यापक परिप्रेक्ष्य को समृद्ध करते हैं, और कौन‑से नए अनुष्ठान आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
चैत्र नवरात्रि 2025: माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और इच्छा पूर्ति की आशा
प्रकाशित किया गया सित॰ 27, 2025 द्वारा Devendra Pandey
30 मार्च से शुरू होकर 7 अप्रैल तक मनाया जाने वाला चैत्र नवरात्रि 2025, हिन्दू नववर्ष का प्रतीक है। नौ दिनों में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों को अर्पित विशेष भोग, रंग और अनुष्ठान होते हैं। शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक, प्रत्येक दिवस का अपना अर्थ और इच्छापूर्ति की शक्ति है। इस अवधि में उपवास, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से वातावरण आध्यात्मिक बन जाता है। नवरात्रि के अंत में राम नवमी का आयोजन भी होता है।