डिजिटल संप्रभुता – भारत का डिजिटल भविष्य

जब हम डिजिटल संप्रभुता, देश की डिजिटल बुनियादी संरचना, डेटा और तकनीकी निर्णयों पर पूर्ण नियंत्रण. इसके साथ ही डेटा प्राइवेसी, व्यक्तियों और संस्थानों के डेटा को सुरक्षित रखने की नीति और साइबर सुरक्षा, डिजिटल संसाधनों को हमले और छेड़छाड़ से बचाना भी शामिल होते हैं। हमारे लिये डिजिटल भुगतान प्रणाली, ऑनलाइन लेन‑देन के सुरक्षित मंच और राष्ट्रीय डेटा केंद्र, सरकारी डेटा का संग्रहीत और प्रबंधित करने वाला क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर अहम हैं। इन बुनियादों के बिना डिजिटल संप्रभुता अधूरी है।

डेटा प्राइवेसी और संप्रभुता के संबंध

डेटा प्राइवेसी वह सुरक्षा परत है जो नागरिकों के व्यक्तिगत जानकारी को अनधिकृत उपयोग से बचाती है। जब सरकार अपने डेटा को अपनी आधिकारिक क्लाउड में रखती है, तो वह डिजिटल संप्रभुता को मजबूत करती है क्योंकि डेटा विदेशियों के हाथों में नहीं जाता। इस कारण भारत ने ‘डेटा लोकेशन’ नियम लागू किए, जिससे सभी संवेदनशील डेटा को देश के भीतर ही स्टोर करना अनिवार्य हो गया। ऐसा नियम न केवल व्यक्तिगत गोपनीयता को बचाता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को भी भारत के नियमों का सम्मान करने पर मजबूर करता है। यही कारण है कि डेटा प्राइवेसी, डिजिटल संप्रभुता की नींव में से एक मानी जाती है।

साइबर सुरक्षा के बिना डेटा प्राइवेसी अधूरी है। हैकर्स और सायबर‑क्रिमिनल्स अक्सर डेटा चोरी करके राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालते हैं। इसलिए एक मजबूत साइबर‑डिफ़ेंस मेकैनिज़्म, जैसे एंजेल‑इंटेलिजेंस आधारित खतरों की पहचान, डिजिटल संप्रभुता को सुरक्षित रखता है। भारत ने हाल ही में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति बनाकर सभी सरकारी पोर्टल और डेटा सेंटर को एकसाथ सुरक्षित करने की कोशिश की है, जिससे हमले के जोखिम को कम किया जा सके। यह नीति, डेटा प्राइवेसी के साथ मिलकर, डिजिटल संप्रभुता को दो‑स्तर का कवच देती है।

डिजिटल भुगतान प्रणाली का विस्तार भी संप्रभुता को सशक्त बनाता है। जब नागरिक UPI, BHIM और डिजिटल वालेट के जरिए लेन‑देन करते हैं, तो हर लेन‑देन भारत के फ़िनटेक इकोसिस्टम में रहता है, बाहरी प्लेटफ़ॉर्म पर नहीं। इससे विदेशी भुगतान गेटवे पर निर्भरता घटती है और वित्तीय डेटा भारतीय रेगुलेशन्स के अधीन रहता है। यह आर्थिक आत्मनिर्भरता, डिजिटल संप्रभुता की एक प्रमुख विशेषता है, जो देश की वित्तीय स्थिरता को भी बढ़ावा देता है।

राष्ट्रीय डेटा केंद्र भारत के डिजिटल किले की तरह हैं। वे क्लाउड‑आधारित सर्वर फॉर्मेट में सरकारी, स्वास्थ्य, कृषि और शैक्षिक डेटा को सुरक्षित रखते हैं। इन केंद्रों की विशेषता यह है कि डेटा को विदेशियों के डेटा‑सेंटर में नहीं भेजा जाता, जिससे डेटा सुरक्षा और नियामक अनुपालन दोनों सुनिश्चित होते हैं। जैसा कि भारत ने 'इंडियन क्लाउड' पहल शुरू की है, राष्ट्रीय डेटा केंद्र इस पहल का मंच बन चुका है, जिससे डिजिटल संप्रभुता का स्तर और भी ऊँचा हो गया है।

नीतिगत फ्रेमवर्क डिजिटल संप्रभुता को दिशा देते हैं। ‘डिजिटल इंडिया’ मिशन, ‘डेटा बिल’, और ‘साइबर सुरक्षा नीति’ मिलकर एक समग्र ढाँचा बनाते हैं, जिसमें तकनीकी सहभागिता, बुनियादी ढाँचा, और कानून शामिल हैं। यह ढाँचा न केवल तकनीक को स्वच्छ रखता है, बल्कि निजी कंपनियों को भी सरकारी नियमों के साथ काम करने के लिए प्रेरित करता है। जब नीति, तकनीक और नियमन एक साथ चलते हैं, तो डिजिटल संप्रभुता की स्थिरता सुनिश्चित होती है।

दुनिया भर में कई देश डिजिटल संप्रभुता के लिये अलग‑अलग मॉडल अपनाए हैं। चीन ने ‘स्यूँ सिंग’ क्लाउड से अपने डेटा को पूरी तरह नियंत्रित किया, जबकि यूरोपीय संघ ने ‘जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR)’ के जरिए व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा पर ज़ोर दिया। भारत इन दोनों मॉडलों को देख कर अपना ‘सबल डिजिटल संप्रभुता’ मॉडल तैयार कर रहा है, जिसमें निजी‑सार्वजनिक साझेदारी और राष्ट्रीय डेटा कंट्रोल दोनों शामिल हैं। इस वैश्विक परिप्रेक्ष्य से पता चलता है कि डिजिटल संप्रभुता केवल तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है।

इन सभी पहलुओं को समझने के बाद आप नीचे सूचीबद्ध लेखों में गहराई से देख पाएँगे कि कैसे भारत की विभिन्न योजनाएँ, नीतियाँ और तकनीकी कदम डिजिटल संप्रभुता को आकार दे रहे हैं। चाहे वह नवीनतम आईपीओ की चर्चा हो, मौसम विभाग की डिजिटल चेतावनी प्रणाली, या विदेशी हवाई सेवाओं की पुनः शुरुआत—सबका एक जुड़ाव डिजिटल स्वतंत्रता से है। चलिए, आगे के लेखों में इन कहानियों को विस्तार से देखते हैं।

9अक्तू॰

Zoho Arattai ने 3,000 से 3,50,000 डाउनलोड तक की तेज़ी हासिल की, जब अमित शाह और आश्विनी वैष्णव ने इसे अपनाया, सरकारी समर्थन से भारतीय डेटा सुरक्षा का नया दौर शुरू।