राम नवमी – इतिहास, रीति‑रिवाज और आज के ख़ास तथ्य

जब हम राम नवमी, भगवान राम के जन्म को मनाने वाला प्रमुख हिन्दू त्यौहार, श्रीराम जन्मोत्सव की बात करते हैं, तो यह समझना जरूरी है कि यह पर्व भगवान राम, अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े पुत्र, आदर्श राजतत्व का प्रतीक से गहरा जुड़ा है। इसकी जड़ें वाल्मीकि रामायण, प्राचीन ग्रंथ जिसमें राम का जीवन वर्णित है में पाई जाती हैं और इसे मनाने के मुख्य अभ्यास व्रत, उपवास व प्रार्थना के माध्यम से शुद्धि तथा पूजा, भक्तियों द्वारा अरण्य में हवन, कथा और अभिषेक से भरपूर हैं।

इतिहासिक तौर पर राम नवमी का उल्लेख महाकाव्य रामायण के कई संस्करणों में मिलता है। ग्रन्थ में कहा गया है कि अयोध्या के राजपरिवार ने इस दिन बच्चे के जन्म पर विशेष व्रत रखा था, और बाद में यह परंपरा पूरे भारत में फैली। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राम के जन्म की तारीख चंद्र कलेंडर में चैत्र शुक्ल पक्ष में आती है, इसलिए हर साल कई क्षेत्रों में इस दिन को अलग‑अलग समय पर मनाया जाता है। इस प्रकार, राम नवमी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक खिड़की है जो हमें प्राचीन धर्मशास्त्र और सामाजिक रीति‑रिवाजों से जोड़ती है।

रिवाजों की बात करें तो सबसे पहले व्रत रखा जाता है। हिमाचल से तमिलनाडु तक, लोग साँउ रेती से शुरू कर दिन भर जल, फल और हल्की सब्ज़ी खाकर उपवास रखते हैं। व्रत के बाद विशेष पूजा में रामजी को शंख, चक्र और बाण से सजाते हैं, फिर दिये जलाकर मंत्र जाप किया जाता है। कई घरों में राम लला को ‘भोजन’ नहीं, बल्कि ‘पवित्र जल’ दिया जाता है, जो अंत में सभी को बांटा जाता है। इस प्रक्रिया में ‘भजन‑कीर्तन’ और ‘रक्षा पाठ’ का भी महत्वपूर्ण स्थान है, जिससे घर की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है।

देश के अलग‑अलग हिस्सों में राम नवमी के उत्सव के रंग अलग‑अलग दिखते हैं। अयोध्या में शहंशाह बाजार के पास बड़े मंडप लगते हैं, जहाँ लड्डू‑बर्फी का संगम मिलता है और हनुमान जी की ध्वजवाहियों के साथ धूमधाम होती है। बंगाल में इस दिन ‘रावण दहन’ की एक विशेष रस्म होती है, जबकि दक्षिण भारत में तमिलनाडु के मंदिरों में ‘विजयोत्सव’ के रूप में महारथी नृत्य प्रस्तुत होते हैं। इन विविधताओं से स्पष्ट होता है कि राम नवमी एक राष्ट्रीय, फिर भी स्थानीय स्तर पर बहुत ही जीवंत ति‍व है, जहाँ हर क्षेत्र अपनी संस्कृति के साथ इसे जोड़ता है।

आज के डिजिटल युग में राम नवमी की महत्ता और भी बढ़ गई है। सोशल मीडिया पर #RamNavami टैग से लाखों पोस्ट लाइक और शेयर होते हैं, और शासकीय अधिकारियों द्वारा अक्सर कार्यक्रमों की लाइव कवरेज दी जाती है। कुछ राज्यों में सरकारी स्कूलों में ‘राम कथा’ के विशेष सत्र होते हैं, जिससे बच्चे भी इस इतिहास को आसानी से समझ पाते हैं। साथ ही, कई NGOs इस अवसर पर मुफ्त भोजन, दान और शिक्षा अभियान चलाते हैं, जिससे त्यौहार का सामाजिक पहलू और उज्ज्वल बनता है। इस तरह, राम नवमी केवल धार्मिक काम नहीं, बल्कि सामाजिक जुड़ाव और जागरूकता का भी माध्यम बन गया है।

अगर आप इस साल राम नवमी को सही रूप से मनाना चाहते हैं, तो कुछ आसान सुझाव याद रखें: पहले दिन सुबह जल्दी उठें, पानी में हल्दी मिलाकर पिएँ, फिर हल्का फल‑स्लाइस खाकर व्रत शुरू करें। घर में रामलला की तस्वीर या मूर्ति रखें, छोटे बच्चों को कथा सुनाएँ और साथ में रासलीला या लड्डू‑बर्फी बनाकर बांटें। यदि आप बाहर जाकर जश्न मनाते हैं, तो स्थानीय मंदिर में आयोजित विशेष सुनवाई या पथ यात्रा में भाग लें, जहाँ अक्सर मुफ्त भोजन भी दिया जाता है। इन छोटे‑छोटे कदमों से न सिर्फ आपके मन को शांति मिलेगी, बल्कि आपके आस‑पास की दुनिया भी एकजुट होगी।

अब आप राम नवमी के इतिहास, रीति‑रिवाज और आधुनिक पहलुओं से परिचित हो गए हैं, तो नीचे आने वाले लेखों में आप इन विषयों से जुड़ी ताज़ा ख़बरें, गहन विश्लेषण और प्रयोगात्मक गाइड पाएँगे जो आपके उत्सव को और भी सार्थक बनायेंगे।

27सित॰

30 मार्च से शुरू होकर 7 अप्रैल तक मनाया जाने वाला चैत्र नवरात्रि 2025, हिन्दू नववर्ष का प्रतीक है। नौ दिनों में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों को अर्पित विशेष भोग, रंग और अनुष्ठान होते हैं। शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक, प्रत्येक दिवस का अपना अर्थ और इच्छापूर्ति की शक्ति है। इस अवधि में उपवास, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से वातावरण आध्यात्मिक बन जाता है। नवरात्रि के अंत में राम नवमी का आयोजन भी होता है।